२७ अप्रैल २०१८
संत कहते हैं, देह बल्ब
की तरह है, मन उसमें से आने वाले प्रकाश की तरह और आत्मा उस विद्युत ऊर्जा की तरह
जो दिखाई नहीं देती. मन की शक्ति ही प्रकाश का माप है, अर्थात जिस प्रकार सौ वाट
का बल्ब अधिक प्रकाश देता है, चालीस वाट का कम, इसी प्रकार जिसका मन कमजोर है, वह
समान आत्मा रूपी विद्युत् ऊर्जा से जुड़कर भी कम प्रकाशित होता है और जिसका मन शक्तिशाली है वह अधिक. जैसे हम विद्युत का प्रभाव ही देखते हैं, वैसे ही आत्मा का
प्रभाव ही क्रिया, ज्ञान और इच्छा के रूप में हमें प्रतीत होता है. सद्कर्म करने
के लिए शक्ति की इच्छा और ज्ञान के
अतिरिक्त परमात्मा से मांगने योग्य फिर क्या बचता है. नानक ने कहा है, वह प्रभु
सबको समान रूप से मिला है, किसी का घर उसने खाली नहीं रख छोड़ा है. अब उस अपार
शक्ति से हम कितना लेकर बाहर फैलाते हैं यह हमारी पात्रता पर निर्भर है.
मन के हारे हार है मन के जीते जीत"
ReplyDeleteयह कहावत बनाने वाला गजब का मनोवैज्ञानिक रहा होगा.
मेरी नई पोस्ट :
https://rohitasghorela.blogspot.in/2018/04/3.html
स्वागत व आभार रोहितास जी, सही कहा है आपने !
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