देह देवालय है, देह में आत्मरूप से वही परमात्मा विद्यमान है. हम अहंकार के वशीभूत होकर इस सच से आँखें मूँदे रहते हैं. सदगुरू इस राज से पर्दा उठाते हैं और एक नयी दुनिया में हम कदम रखते हैं. जहाँ प्रेम का ही साम्राज्य है, जहाँ एक की ही सत्ता है, जहां अद्वैत मात्र सिद्धांत नहीं वास्तविकता है. जहाँ अपूर्व शांति है जहाँ जीवन अपने कोमलतम शुद्ध रूप में आँखें खोलता है. वह अनुपम लोक जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, जहाँ नेति-नेति कहकर ही शास्त्र इशारा करते हैं. ऐसा एक लोक हमारे भीतर है, सदगुरू इसका भेद बताते हैं. कृष्ण इसे ही गुह्यतम ज्ञान कहते हैं.
जय श्री राधे
ReplyDeleteसादर नमन
स्वागत व आभार यशोदा जी !
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