Friday, August 26, 2022

जीवन रंगमंच है सुंदर

 “मैं कौन हूँ” इस प्रश्न का जवाब खोजे नहीं मिलता. बुल्लेशाह तभी कहते हैं, बुल्लाह, की जाना मैं कौन ? हम किताबें पढ़ते हैं, शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, संतों की वाणी सुनते हैं, पर यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है. बाहर संसार है भीतर विचार है, ध्यान की गहराई में जाएँ तो वहाँ कुछ भी नहीं, पूछने वाला ही नहीं रहा, यदि पूछने वाला है तो ध्यान घटा ही नहीं. जहाँ कुछ नहीं रहता वहाँ परमात्मा है, और परमात्मा ने अखंड मौन धारण किया हुआ है. वास्तव में प्रकृति और परमात्मा के इस खेल में ‘मैं’ तभी तक है, जब तक अज्ञान है, अर्थात जब तक खोज शुरू ही नहीं हुई. देह और मन से परे ‘मैं’ एक अविनाशी सत्ता है, इसका ज्ञान होने पर ही पता चलता है, कि वहाँ कुछ भी नहीं है. जीवन तब एक खेल या नाटक ही प्रतीत होता है.

2 comments:

  1. संक्षिप्त लेकिन सुन्दर,भावपूर्ण लेख। हार्दिक आभार।

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