Wednesday, March 1, 2017

स्वयं से जुदा रहे न कोई

 २ मार्च २०१७ 
एक व्यक्ति ने किसी संत से पूछा, सत्य क्या है ? उन्होंने कहा, नेत्र बंद करो और अपने भीतर कुछ ऐसा खोजो जो सदा एक सा है, जो आजतक नहीं बदला, न ही जिसके बदलने की सम्भावना है. वह व्यक्ति कुछ देर बाद नेत्र खोल कर बोला, ऐसा तो भीतर कुछ भी नहीं मिला, शरीर का अनुभव हुआ, पर वह तो कितना बदल गया है,  विचार निरंतर बदल रहे हैं, भावना भी बदल रही है. संत ने कहा, जो यह परिवर्तन देख रहा है वह तुम कौन हो ?  हमारे भीतर हम स्वयं ही अपरिवर्तित रह जाते हैं, किन्तु स्वयं से अपरिचित होने के कारण हम इसे देख ही नहीं पाते. दर्पण में देखने पर हम स्वयं को देह मानकर उसके साथ एकत्व का अनुभव करते हैं, सिर पर श्वेत केशों के झलकते ही उदास हो जाते हैं. नाटक देखते समय मन के साथ एकत्व कर लेते हैं और पल-पल सुखी-दुखी होते रहते हैं. किसी ने हमारे प्रतिकूल कुछ कह दिया तो भावनाओं के साथ एक हो जाते हैं और व्यर्थ ही स्वयं को आहत कर लेते हैं. ध्यान में जब हमे स्वयं के साथ जुड़ते हैं तो ही सहजता का अनुभव करते हैं, सहजता आत्मा का स्वाभाविक गुण है, जो आज का व्यक्ति खोता जा रहा है. 

4 comments:

  1. अनिता जी ! आपने बडी अच्छी बात कही है, हम सब के भीतर ही परमात्मा है - अहं ब्रह्मास्मि ।

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    1. स्वागत व आभार शकुंतला जी !

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  2. ध्यान में जब हमे स्वयं के साथ जुड़ते हैं तो ही सहजता का अनुभव करते हैं, सहजता आत्मा का स्वाभाविक गुण है, जो आज का व्यक्ति खोता जा रहा है. ......

    स्वयं के साथ जुड़ना अपनी सहजता को पाना है. आत्मा को कुछ नहीं चाहिए. उसे सिर्फ देना आता है. उसके पास सब कुछ असीम है. ह्रदय के वेवलेंथ (तरंगदैर्य ) पर आप अपनी आत्मा को किसी के साथ जोड़ सकते हैं. ये बेहद ही दिलचस्प और चमत्कारिक अनुभव है. जैसे कि मैं आपके पोस्ट को पढ़ते हुए खुद को आपसे जोड़ लेता हूँ.

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  3. सही कहा है आपने आत्मा अपने शुद्ध रूप में पूर्णता का अनुभव करती है, गहन ध्यान में सारे विश्व के साथ एकत्व का अनुभव होता है. स्वागत व आभार राहुल जी.

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