Monday, January 10, 2022

ज्योति एक ही हर अंतर में

प्रमाद, अकर्मण्यता और सुविधाजीवी होना हमारे  लिए त्यागने योग्य है। प्रमाद का अर्थ है जानते हुए भी देह, मन व आत्मा के लिए हितकारी साधनों को न अपनाना तथा अहितकारी कार्यों को स्वभाव के वशीभूत होकर किए जाना। अकर्मण्यता अर्थात अपने पास शक्ति व सामर्थ्य होते हुए भी कर्म के प्रति रुचि न होना तथा दूसरों पर निर्भर रहना। सुविधजीवी होने के कारण हम देह को अधिक से अधिक विश्राम देना चाहते हैं, पर इसका परिणाम दुखद होता है जब एक दिन देह रोगी हो जाती है। स्वयं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान न होने के कारण आत्मा का पोषण करने की बजाय हम उसके विपरीत चलना आरम्भ कर देते हैं। आत्मा सभी के भीतर समान रूप से व्याप्त है, उसमें अपार शक्तियाँ छिपी हैं। हर किसी को उसके किसी न किसी पक्ष को उजागर करना है। साधक को हर क्षण सजग रहकर ऐसा प्रयत्न करना होगा कि ईश्वर का प्रतिनिधित्व उसके माध्यम से हो सके। वह ईश्वर के प्रकाश को अपने माध्यम से फैलने देने में बाधक ना बने। 


5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-01-2022) को चर्चा मंच     "सन्त विवेकानन्द"  जन्म दिवस पर विशेष  (चर्चा अंक-4307)     पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. । सुविधजीवी होने के कारण हम देह को अधिक से अधिक विश्राम देना चाहते हैं, पर इसका परिणाम दुखद होता है जब एक दिन देह रोगी हो जाती है। स्वयं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान न होने के कारण आत्मा का पोषण करने की बजाय हम उसके विपरीत चलना आरम्भ कर देते हैं
    क्या करें हम देह को ही मैं समझ बैठे हैं
    ज्ञानवर्धक लाजवाब सृजन।

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    1. नींद में जब देह का भान नहीं रहता तब भी तो हम रहते हैं, स्वप्न में हम क्या इस देह से चलते-फिरते हैं, तब भी तो हम सूक्ष्म देह धारण करते हैं, फिर केवल इस भौतिक देह को ही स्वयं मान लेना क्या सही है

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  3. बहुत सुन्दर आलेख है महोदया!। यहाँ अपना मत जाहिर करना चाहूँगा आ.अनीता जी कि प्रमाद व अकर्मण्यता तो सर्वथा ही त्याज्य हैं, किन्तु कदाचित सुविधाजीवी होना तब तक अनुचित है, जब तक वह प्रमाद का कारण न बन जाय। सुविधाभोगिता कभी-कभी मनुष्य की कार्यक्षमता को बढ़ाने में सहायक हो सकती है, ऐसी मेरी धारणा है। यदि मेरा तर्क सही नहीं लगे तो कृपया मुझे अवगत अवश्य कराएँ।

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