Saturday, June 4, 2022

संतुलन को साधा जिसने

त्याग पर भोग हावी होता रहा तो पर्यावरण को संतुलित बनाये रखना बहुत कठिन होगा. अनावश्यक भोग भी न हो तथा अनावश्यक कर्म भी न हों, कहीं तो हमें विकास के लिए भी सीमा रेखा खींचनी होगी. जीने का सीधा सरल रास्ता हमें ढूँढ़ निकलना होगा, ऐसा रास्ता जो हमें कल्याण की ओर ले जाये. वह परम सुख ही हमारी मंजिल है. आज सबकुछ होने के बावजूद हम शांति से वंचित रह जाते हैं. रिश्तों में औपचारिकता बढ़ रही है, सहज विश्वास जैसे खोता जा रहा है। अहंकार की दीवार मन का वह बाहर का वातावरण खंडित कर देती है। हम प्रेम बाँटने में कंजूसी करते हैं और प्रेम स्वीकारने में भी झिझकते हैं. वास्तव में अहंकार कुछ है ही नहीं, प्रेम का अभाव ही अहंकार है और प्रेम का कभी अभाव होता ही नहीं. जैसे ही हम सजग होते हैं, दूरी मिट जाती है. वातावरण में एक समरसता भर जाती है. सारा जगत तब अपना लगता है, वस्तुओं को भी उपभोग करना छोड़कर उनका उपयोग करना सीखते हैं. पर्यावरण के प्रति एक ज़िम्मेदारी का अहसास भीतर जगता  है  

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