मानव के सम्मुख लक्ष्य यदि स्पष्ट हो तो जीवन यात्रा सुगम हो जाती है। मन की समता बनी रहे तो भीतर का आनंद सहज ही प्रकट होता है, इसलिए योग के साधक के लिए मन की समता प्राप्त करना सबसे बड़ा लक्ष्य हो सकता है। परमात्मा तो सुख का सागर है ही, इसलिए भक्त के लिए परमात्मा के साथ अभिन्नता अनुभव करना उसका लक्ष्य है. निष्काम कर्मों के द्वारा कर्मयोगी कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है, इसलिए कर्मयोगी अपने कर्मों से समाज को उन्नत व सुखी देखकर सुख का अनुभव करता है। तीनों का अंतिम लक्ष्य तो एक ही है, वह है आनंद ! देखा जाये तो सांसारिक व्यक्ति भी हर प्रयत्न सुख के लिए ही करते हैं, किन्तु दुःख से मुक्त नहीं हो पाते क्योंकि उन्होंने अपने सम्मुख कोई बड़ा लक्ष्य नहीं रखा.
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