Monday, December 12, 2011

गुरुद्वार


अगस्त २००२ 
सदगुरु वास्तव में उसे ही मिलते हैं, जिसका हृदय उनकी कद्र जानता है. वास्तव में वह क्या हैं?, कौन हैं? कोई नहीं जानता. उनकी कृपा का एक अंश ही मिल जाये तो साधक का मार्ग प्रशस्त हो जाता है. लेकिन उसे पाने के लिये अहं को पूरी तरह नष्ट करना होगा. गुरु द्वार पर अकिंचन बन कर ही जाना होगा. उन्हें अहं तोड़ना आता है और जब वह ऐसा करें तो वहाँ से भाग आने के सिवा कुछ और भी करना सीखना होगा. अहं और ममता के दो ताले हैं जिन्हें खोले बिना हम ईश्वर तक नहीं पहुँच सकते. पर जहाँ प्रेम होता है वह तत्क्षण जवाब देते हैं. हृदय के सच्चे प्रेम को वह अस्वीकार नहीं कर पाते और धीरे-धीरे साधक के हृदय से अहंकार व ममता नष्ट होने लगते हैं.   

3 comments:

  1. जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं
    सब अंधियारा मिटि गया दीपक देख्या माहीं।

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  2. देवेन्द्र जी, आपने सही कहा है...वहाँ एक के लिये ही जगह है.

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  3. जहाँ प्रेम होता है वह तत्क्षण जवाब देते हैं. हृदय के सच्चे प्रेम को वह अस्वीकार नहीं कर पाते और धीरे-धीरे साधक के हृदय से अहंकार व ममता नष्ट होने लगते हैं.

    दीदी आपकी इस बात से आंसू आगये ..वो जबाब देते होंगे न अभी मुझे समझ नहीं आता दी ...बस इतना अच्छा लगता है मेरा हृदय प्रेम से भरा है बार बार आँखों के रास्ते छलकता रहता है !

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