Sunday, December 18, 2011

स्वर्ग का राज्य


अगस्त २००२ 
जीवन रूपी साज से सुमधुर स्वर कैसे निकालें, इसका बोध हमें करना है, जीवन रूपी नौका में दुःख रूपी जल भरने न पाए इसका भी ज्ञान हमें लेना है और इस जग रूपी तलैया में कमलवत कैसे रहा जाये इसकी कला सीखनी है तभी हम उस स्वर्ग के अधिकारी हो सकते हैं जिसके बारे में ईसा ने कहा था कि वह हमारे भीतर है. ध्यान के समय जब मन टिक जाता है तो उसके ऊपर की परतें एक एक कर उतरने लगती है. ‘मैं’ और ‘मेरे’ की कल्पनाएँ और अहं का भारी गट्ठर जो हमने लाद रखा है, जो जीवन रूपी नदी के चिकने पत्थरों पर पांव टिकाने से हमें रोकता है, हम फिसलते ही चले जाते हैं, उसे भी उतार फेंकना है. मन शीशे सा पारदर्शी हो जाये, बिल्कुल हल्का तो परमात्मा की झलक अपने आप मिलने लगती है. हम व्यर्थ ही इतने सारे सवालों और जवाबों से मन को ढ़के रहते हैं, मूल तक पहुँच ही नहीं पाते. अपनी मान्यताओं और पूर्वाग्रहों की रस्सी गले में बांध रखी है, इन्हें कोई ठेस पहुंचाए तो हम कैसे तिलमिला उठते हैं, अपने अनुकूल कोई बात न हो, तो मन कैसे बुझ जाता है. समता का भाव टिकाना हो तो सत्संग ही काम आता है. धर्म की रक्षा करें तो धर्म हमारी रक्षा करता है. फिर भी यदि विफलता आती है तो उसका स्वागत भी उसी तरह करना है जैसे सफलता का करते हैं. हर हाल में अपने मन की सौम्यता बनाये रखनी है. संसार को अपेक्षा से नहीं देखना है, पर उपेक्षा भी नहीं करनी है. उदासीनता होनी चाहिए उदासी नहीं. यही जीवन जीने की कला है.

6 comments:

  1. हर हाल में अपने मन की सौम्यता बनाये रखनी है. संसार को अपेक्षा से नहीं देखना है, पर उपेक्षा भी नहीं करनी है. उदासीनता होनी चाहिए उदासी नहीं. यही जीवन जीने की कला ... wakai , kitni shalinta se aapne gahra tathya samjha diya

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  2. मन निर्मल हो जाए तो इश्वर के दर्शन अपने आप हो जाते हैं ... सार्थक चिंतन ...

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  3. अच्छी विचार्प्रेरक पोस्ट जीवन को समभाव दृष्टा भाव से देखने की कला सिखलाती .

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  4. समता का भाव टिकाना हो तो सत्संग ही काम आता है.

    आपका हर शब्द अनमोल है.
    आपके सत्संग से बहुत आनंद मिलता है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    हनुमान लीला-भाग-२ पर आपका स्वागत है.

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  5. thoughtful advice on how to live happily

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  6. रश्मि जी, दिगम्बर जी, राकेश जी, एसएम जी, वीरूभाई जी आप सभी का आभार!

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