ऐसे तो हर
कोई सुख की खोज में लगा है पर जो सचेतन होकर सुख की तलाश में निकलता है वह एक दिन
स्वयं को सुख के सागर में पाता है. सुख की तलाश जब सजग होकर की जाती है तो उसका
पता पूछना होगा, जो भी ऐसे कारण हैं जो सुख को दूर करते हैं उन्हें मिटाना होगा.
सजगता ही वह सूत्र है जो किसी को भी मंजिल तक पहुंचा सकती है. इसका सबसे बड़ा कारण
है कि सुख को बनाना नहीं है वह तो मौजूद है, अनंत मात्रा में मौजूद है, जरूरत है
उसका पता पूछकर उस दिशा में कदम बढ़ाने की.
Thursday, October 29, 2015
Monday, October 26, 2015
एक शिवालय है यह तन
मानव देह
परमात्मा का मन्दिर है, देह में ही परमात्मा का अनुभव सम्भव है. मन मनुष्य निर्मित
है, देह नैसर्गिक है. मन बंटा है, अशान्ति मन के कारण है. मन समाज का दिया है, तन प्रकृति
का है, हर पल परमात्मा से जुड़ा है, प्राण जो इस देह को चला रहे है, पंच तत्व जिनमें
परमात्मा ओतप्रोत है, जिनके स्पर्श से भीतर पुलक भर जाती है, इस देह द्वारा ही
अनुभव में आते हैं. इसीलिए संतजन कहते हैं स्वयं को जानो, स्वयं के पार ही वह छुपा
है जिसे जानकर फिर कुछ जानने को शेष नहीं रहता.
Monday, October 5, 2015
ज्ञान भक्ति दोनों ही तारें
मानव जीवन दुर्लभ है,
इसी में कोई सारे दुखों से छुटकारा पा सकता है. ऐसा सुख पा सकता है जो कभी जाता
नहीं है. सुबह से शाम तक किस-किस को दुःख दिया अथवा दुःख देने की भावना की, रात को
सोने से पूर्व इसका लेखा-जोखा कर लें तो धीरे-धीरे कर्म बंधन कट जाते हैं. व्यवहारिक
सत्य-असत्य का ज्ञान होने पर भीतर आग्रह नही रहता. जब एक-दूसरे के दृष्टिकोण को
नहीं समझते तब ही कर्म बंधते हैं. ज्ञान मुक्त कर देता है. किसी को दुःख पहुंचाना
पाप है और किसी को सुख पहुंचाना पुण्य है. दुःख पहुँचाने से यदि हृदय में पश्चाताप
हो तो पाप कट जाता है. भक्ति का खजाना जिसके हृदय में भरा हो, उसे जग से क्या
चाहिए. यह खजाना ऐसा है जो कभी खत्म नहीं होता.
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