Tuesday, December 20, 2016

पितृ देवो भवः मातृ देवो भवः

२१ दिसम्बर २०१६ 
माता-पिता चाहे वे उम्र के किसी भी पड़ाव पर हों, बच्चों की सुख-सुविधा के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं. वे उन्हें सदा प्रसन्न देखना चाहते हैं. एक यही रिश्ता ऐसा है जहाँ  बेशर्त प्रेम, जिसका जिक्र हम सदा सुनते हैं, देखा जाता है. ऐसा करके वे प्रसन्नता का ही अनुभव करते हैं, किन्तु जब बच्चे इसे अपना हक समझते हैं और कृतज्ञता का अनुभव करना तो दूर, इसका अधिक से अधिक लाभ उठाने लगते हैं तो देखने वालों को विचित्र लगता है. कोई भी रिश्ता यदि संतुलित रहे तो फूल की तरह सुगन्ध फैलाता है और यदि एकतरफा हो जाये तो उसमें  सकारात्मक ऊर्जा नहीं रहती। सन्त कहते हैं यदि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता के प्रति श्रद्धा रखता है तो ईश्वर के प्रति प्रेम का बीज उसके भीतर पनपने लगता है. इसके विपरीत यदि कोई बुजुर्गों के प्रति सम्मान की भावना से अछूता है तो परम के प्रति श्रद्धा और आत्मिक सुख से वह वंचित ही रह जाता है.

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