Monday, December 5, 2016

मन है छोटा सा

६ दिसम्बर २०१६ 
जैसे हम अपने घर में वस्तुओं का संग्रह करते रहते हैं, न केवल आवश्यक वस्तुओं का बल्कि कई बार तो ऐसी वस्तुओं का भी जिनकी आवश्यकता कभी नहीं पड़ती अथवा तो पुरानी वस्तुएं जिनकी उपयोगिता भी नहीं रही ; उसी तरह हम मन में विचारों का भी संग्रह करते चले जाते हैं, मन जो एक उपवन बन सकता था उसे अस्त-व्यस्त जंगल बना देते हैं जहाँ  यादों के जाल  हैं और मान्यताओं और विश्वासों के कैक्टस भी. जहाँ  फूल खिलने के लिए सूर्य की रौशनी को पहुँचने  के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है. आस-पास का वातावरण खुला-खुला हो, जरूरतें कम हों तो मन भी हल्का रहता है और इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि  इस दुनिया से रुखसत करते समय हमें अल्प पीड़ा होगी क्योंकि जो छूट रहा होगा वह थोड़ा सा ही होगा।

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