Friday, December 16, 2016

सहज सधे सो मधुर अति है

१७ दिसम्बर २०१६ 
अक्सर लोगों को ऐसा कहते हुए सुना जाता है कि भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है किसी को नहीं पता, अगले पल क्या घटने वाला है कौन जानता है, यह बात बाह्य परिस्थिति के लिए जितनी  सत्य है, उतनी ही असत्य भीतर की स्थिति के लिए है. यदि कोई स्वयं को जानता  है तो उसे मनःस्थिति पर नियंत्रण करना उसी तरह सहज हो जाता है जैसे मीन के लिए पानी में तैरना। भीतर सदा एकरस सहज शांत अवस्था को बनाये रखना उतना कठिन नहीं है जितना हम मान लेते हैं. हम यह भूल जाते हैं कि हमारा मन एक विशाल मन का हिस्सा है और वह विशाल मन परमात्मा का. साधना को अपने जीवन का अंग बना लेने पर भीतर जाना उतना ही सहज है जैसे श्वास लेना और छोड़ना। 

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