Wednesday, March 1, 2017

खिले सदा मुस्कान लबों पर

१ मार्च २०१७ 
संत कहते हैं सदा प्रसन्न रहना भगवान की सबसे बड़ी पूजा है. प्रसन्न रहने का अर्थ है एक ऐसी मुस्कुराहट का मालिक बनना जिसे संसार की कोई भी परिस्थिति मिटा न सके, ऐसी प्रसन्नता किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति पर निर्भर नहीं रहती, वह स्वाभाविक सहजता से उत्पन्न होती है. प्रतिपल यदि हम सजग रहते हैं और अस्तित्त्व से निरंतर झरती हुई ऊर्जा से एकत्व का अनुभव करते हैं तब ही इसका अनुभव किया जा सकता है. अतीत जो जा चुका, पश्चाताप या क्रोध के रूप में हमारी ऊर्जा को व्यर्थ न जाने दे और भविष्य जो अभी आया नहीं हमें आशंकित न करे तो जीवन को उसके समग्र सौन्दर्य के साथ जीने का अनुभव प्राप्त होता है. हमारे चारोंओर जो सृष्टि का इतना बड़ा आयोजन चल रहा है, उसके पीछे छिपे अज्ञात हाथों का स्पर्श हम भी महसूस करने लगते हैं. आकाश हमारा मित्र बन जाता है और हवाएँ सहयोगी. 

2 comments:

  1. हमारे चारोंओर जो सृष्टि का इतना बड़ा आयोजन चल रहा है, उसके पीछे छिपे अज्ञात हाथों का स्पर्श हम भी महसूस करने लगते हैं.

    सृष्टि के प्रति हमारी सजगता अगर सूक्ष्म है तो ये मान लीजिये कि हमारी ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल हो रहा है. अज्ञात हाथों से मिल रही नैसर्गिक प्रसन्नता तो बेहद सहज है. बस महसूस करने की जरुरत है.

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  2. वाह ! कितना सही कहा है आपने, परमात्मा तो लुटा ही रहा है, हमें ही अपना दामन बिछाना है! आभार !

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