नारी तुम केवल श्रद्धा हो..अथवा अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी..आजतक
स्त्री को या तो देवी कहकर पूजा जाता रहा है अथवा उसको कमजोर समझ कर दया की जाती
रही है. मध्यकाल में तो नायिका बनाकर उसके नख-शिख का वर्णन करके उसे भोग की वस्तु ही
बना दिया गया. किन्तु अब समय बदल रहा है, स्त्री ने स्वयं को पहचान कर अपनी
परिभाषा स्वयं लिखनी आरम्भ कर दी है. वह एक मानवी की भांति जीवन के हर रंग, उत्सव
और रस का अनुभव स्वयं करना चाहती है. वह सागर की गहराइयों को भी नाप सकती है और
अन्तरिक्ष की ऊंचाइयों को भी. आज कोई भी कर्मक्षेत्र ऐसा नहीं रह गया है जहाँ
महिला के कदम न पड़े हों. उसकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक क्षमता पर अब
किसी को कोई संदेह नहीं रह गया है. महिला दिवस उसकी उपलब्धियों पर गर्व करने का क्षण
है और साथ ही उन लाखों महिलाओं की आवाज में आवाज मिलाने का वक्त भी जिन्हें अभी
इंसाफ नहीं मिला है, जो आज भी किसी न किसी कारण वश अपनी प्रतिभा को विकसित नहीं कर
पा रही हैं.
सटीक कथन...हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सही ... बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteशुभकामनाएं।
ReplyDeleteस्वागत व आभार सुशील जी !
Deleteब्लॉग बुलेटिन टीम की और रश्मि प्रभा जी की ओर से आप सब को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/03/2019 की बुलेटिन, " आरम्भ मुझसे,समापन मुझमें “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बहुत आभार !
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