Thursday, August 8, 2019

अति का भला न बरसना


"अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप" अति किसी भी वस्तु की हो हानिकारक होती है. आज देश में वर्षा की अति हुई लगती है, दक्षिण के सभी राज्य बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहे हैं. उससे पूर्व बिहार और असम भी इस विपदा का शिकार हुए. गुजरात व महाराष्ट्र के कितने ही जिले पानी में डूब गये, जब शहरों में इतनी बुरी हालत है तो गांवों की तो कल्पना ही की जा सकती है. जब घरों में पानी भर जाता है, लोगों की बरसों की जमापूंजी, सामान, घर-बिस्तर सब कुछ नष्ट हो जाते हैं. इस प्राकृतिक विपदा का सामना यूँ तो हर वर्ष ही करना पड़ता है, किंतु इस साल यह महामारी की तरह सब जगह फ़ैल गयी है. बरसात न हो तो सूखे की सी स्थिति हो जाती है, अब भूमि में जल का स्तर निश्चित रूप से बढ़ जायेगा. बाढ़ के साथ आई ताजी मिटटी खेतों को उपजाऊ कर देगी. उम्मीद है सरकार और देशवासियों के सहयोग से इस विपत्ति का सामना मानव की जुझारू प्रवृत्ति किसी न किसी तरह कर ही लेगी और बरसात का मौसम थमते ही थमते गाड़ी पटरी पर आ जाएगी. किंतु उस समय का उपयोग यदि जिला प्रशासन व्यवस्था पक्के नाले बनाने में करे, प्लास्टिक का उपयोग कम से कम हो, जिससे पानी का निकास न रुके. जल को संचित करने के लिए बड़े जलाशयों का निर्माण हो तब अगले वर्ष बाढ़ आने की नौबत शायद नहीं आये, यदि अधिक बरसात हुई भी तो उसका ज्यादा असर नहीं होगा.  

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