Monday, January 17, 2022

शरण में जो भी आए उसकी

अस्तित्त्व हमें शुद्ध देखना चाहता है। व्यक्ति, वस्तु तथा परिस्थिति विशेष के प्रति मोह ही मन की अशुद्धि है।शुद्ध अंतर्मन में ही परमात्मा का वास होता है, वह स्वयं उसमें विराजना चाहते हैं। पूर्ण परमात्मा हरेक जीवात्मा को पूर्णता की ओर ले जाना चाहता है। इसी कारण जीवन में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण होता है जिनसे हम कुछ सीख सकें। जगत के प्रति हमारी आसक्ति छूट सके इसी कारण रिश्तों में अस्थिरता और नश्वरता का बार-बार अनुभव कराया जाता है। मोह के कारण ही अनेक दुःख आते हैं, इसलिए मोहभंग करने के उपाय भी परमात्मा करता है। भोजन के प्रति गहन आसक्ति को तोड़ने के लिए ही रोग आते हैं ताकि हम सचेत होकर देखें कि जीवन देह के पार भी है. जब जो घटे उसे स्वीकार करना वैराग्य है और हर हाल में मन की समता बनाए रखना शरणागति। मन जहाँ-जहाँ बँधा हुआ है, वहाँ-वहाँ से उसे मुक्त करना है तथा एकमात्र परमात्मा के चरणों में लगाना है।

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-01-2022) को चर्चा मंच     "कोहरे की अब दादागीरी"  (चर्चा अंक-4314)     पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'     

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  2. सार्थक लेख आध्यात्म का सुंदर संदेश, सांसारिक राग को त्यागो पर।राहु मसे राग लगाओ।
    सुंदर।

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