Wednesday, August 3, 2011

स्वर्ग-नर्क


जुलाई २००१ 
जब हमारे दिल मिले हों, स्वर्ग निकट है. मन जब झील के शांत पानी की तरह स्वच्छ और स्थिर होगा तो आत्मा की झलक हम देख पाएंगे. जब भौतिक वस्तुओं का उतना ही आदर होगा जिसके वे योग्य हैं तो हम स्वर्ग के निकट हैं. जब अपने को श्रेष्ठ दिखाने के लिये हम दूसरे को तुच्छ मानते हैं तो नर्क में ही होते हैं. हमारे मन में कामना यदि संसार की होगी तो पूरी होने पर अहंकार को तथा पूरी न होने पर विषाद को जन्म देगी. कामना परम की होगी तो शांति का अनुभव पहले ही होने लगता है... पूरी होने के बाद की शांति की तो हम कल्पना ही कर सकते हैं...अर्थात अपना स्वर्ग व नर्क हम स्वयं ही गढ़ते हैं. 

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