Tuesday, March 13, 2012

नन्हा सा ? यह मन बेचारा


जनवरी २००३   
सत्य के साधक को आपने मन पर नजर रखनी होती है, हमारे मन में एक पल में न जाने कितने विचार आकर चले जाते हैं, जिनके बारे में हम कभी ध्यान ही नहीं देते. ध्यान करते-करते मन जब दर्पण जैसा बन जाये तो भीतर का सारा खेल उसमें झलकने लगता है, तब सूक्ष्म से सूक्ष्म बात भी छिप नहीं सकती. मन ही हमारा शत्रु है और मन ही हमारा मित्र है, सारी साधना इसी मन को केन्द्र में रखकर होती है. हर पल का हमारा साथी है मन, पर इसकी गहराइयों में क्या छिपा है हम नहीं जानते. विचित्र हैं इसकी गतिविधियां. आत्मा की शक्ति ही है मन, हमें आत्मा का संचय करना है अर्थात मन का संचय करना है. व्यर्थ के चिंतन में न लगाकर अपने लक्ष्य पर केंद्रित करना है. ध्यान से ऊर्जा का संचय होता है जो हममें कर्म करने का सामर्थ्य बढ़ाती है. मन की सीमा नहीं और इसीलिए इसको असीम प्रेम, ज्ञान व शांति से ही संतुष्ट किया जा सकता है ससीम वस्तुओं से नहीं.

5 comments:

  1. मन पर किया गया यह मनन मन को बहुत भाया।

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    1. मनोज जी, बहुत बहुत आभार !

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  2. मन ही भगवन है ...सुन्दर लेख ..
    आभार ..
    kalamdaan.blogspot.in

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    1. ऋतु जी, मन भगवन है तभी तो सारा खेल है माया का...

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  3. bahut hi satik vishleshan hai man ka.

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