Wednesday, May 23, 2012

धर्म और विज्ञान


धर्म व्यक्ति का परिमार्जन करता है और विज्ञान वस्तु का परिमार्जन करता है. धर्म अंतर में ले जाता है, विज्ञान बाहर की ओर ले जाता है. अंतःकरण का परिमार्जन करने के बाद उसका उपयोग विज्ञान के लिये भी किया जा सकता है परहित के लिये. ऐसा विज्ञान दोषों के प्रति सजग होगा. और जो भी कार्य उसके द्वारा होगा, उसका कर्ताधर्ता एक ‘वही’ होगा, करने वाला निमित्त मात्र होगा. करने वाले का एक मात्र लक्ष्य तो अंतःकरण का परिमार्जन है सो वह निंदा का पात्र होने पर भी कभी अपमानित नहीं होगा, सुख-दुःख आदि में सम भाव में रहकर वह अपने अंतर आकाश को प्राप्त कर लेता है, जिस पर संसार रूपी बादल आते-जाते रहते हैं. पर वह सदा एक सा ही है.

4 comments:

  1. लाजवाब व्याख्या है ... सार्थक चिंतन ..

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  2. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    विचार बोध
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  3. दिगम्बर जी,आभार व स्वागत !

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  4. सुन्दर और गहन.....शीर्षक से याद आया की 11 कक्षा में इस विषय पर निबंध लिखा था मैंने, जिसे सबसे अच्छे अंक मिले थे :-)

    पर आपका लेख किसी और तरफ इशारा है जो सदा है......बहुत ही सुन्दर।

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