Monday, April 22, 2013

समाधि ही देती समाधान


 जुलाई २०१३ 
 चित्त के समाधान के लिए पहला कदम है विनम्रता, उद्दन्डता से चित्त समाधि में प्रविष्ट नहीं हो सकता. अपना ही दृष्टिकोण सही है, यह दुराग्रह रखने वाला समर्पित नहीं हो सकता. चित्त यदि व्याकुल है तो अवश्य अपने मार्ग से भटका है. सुख मिलने पर सुखी और दुःख मिलने पर दुखी तो पशु भी हो लेते हैं, साधक दोनों से परे होने की कला सीखता है., आत्मारामी होता है. आत्मा अव्यय है, अविनाशी है, अप्रमेय है, प्रकृति इसके विपरीत है. समपर्ण के द्वारा ही प्रकृति के पार जाया जा सकता है. एकनिष्ठ चित्त ही समाहित होता है. समाहित चित्त ही समाधि तक पहुंचता है. 

5 comments:

  1. समाहित चित्त ही समाधि तक पहुंचता है....
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    बेशक उम्दा लिखती हैं आप ....

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  2. प्रकृति इसके विपरीत है. समपर्ण के द्वारा ही प्रकृति के पार जाया जा सकता है.
    बहुत सही

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  3. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।

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  4. राहुल जी, सदा जी व राजेश जी आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !

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  5. मार्गदर्शन करती पोस्ट

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