जगत
में जिस किसी को भी जिस शै की तलाश है, उसे पाने के लिए खुद ही वह बन जाना होता है.
इस जगत का अनोखा नियम है यह, यहाँ स्वयं मिटकर स्वयं को पाना होता है. तपता हुआ
सूरज बन कर ही प्रकाश फैलाना सम्भव है, हिम शिखर हुए बिना शीतलता क्योंकर बिखरेगी,
प्रेम यदि पाना है तो स्वयं प्रेम बने बिना कहाँ मिलेगा इसी तरह शांति का अनुभव भी
शांत हुए बिना नहीं खिलेगा.
बिलकुल सत्य कहा है...स्वयं को खोकर ही स्वयं से साक्षात्कार हो सकता है..
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