२७ जून २०१६
ऋषियों ने गाया
है परमात्मा पूर्ण है, उस पूर्ण से निकला जगत भी पूर्ण है. हर चेतना मूल रूप में
अपने आप में पूर्ण है. एक बीज प्रकृति की हर बाधा को पार करता हुआ जगत में अपनी
सत्ता को प्रकट करता है. एक शिशु भी बिना कुछ सिखाये ही प्रेम और शक्ति का
प्रदर्शन करता है. कितना अच्छा हो हर व्यक्ति को अपनी निजता में जीने का अधिकार
मिले, किसी से किसी की तुलना न हो, प्रतिस्पर्धा न हो. इस स्थिति में क्या सहज ही
मानव तनाव और हर तरह के दबाव से स्वयं को मुक्त नहीं पायेगा.
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