Thursday, April 6, 2017

निज हाथों में मन की डोर

६ अप्रैल २०१७ 
आत्मा सागर है और मन उसमें उठने वाली तरंगें, आत्मा आकाश है, मन उसमें तिरने वाले बादल. आत्मा कच्चा माल है और मन उसका उत्पादन..हम किसी भी तरह से सोचें अस्तित्त्व और हमारे मध्य कोई न कोई संबंध देख ही सकते हैं. ऐसा संबंध जो हमने नहीं बनाया है जो सदा से है. हम इस बात के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं कि मन को कैसा मानें, तरंगों की भांति जिस पर हमारा कोई नियन्त्रण नहीं, बादलों की भांति जो आते हैं और चले जाते हैं, अथवा तो स्वयं के पूर्ण नियन्त्रण में बनने वाले उत्पाद के रूप में. स्वयं को आत्मा जानकर जब  हम अपने विचारों को गढ़ते हैं, उन्हें सजाना-संवारना हमारे हाथ में होता है. हर विचार एक बीज है और हर बीज  कर्म रूप में वृक्ष  बनेगा जिस पर फल भी लगेंगे और नये बीज भी बनेंगे, जो बिलकुल वैसे ही होंगे जैसा बीज था. इसका अर्थ हुआ हमारा भाग्य हमारे विचारों का ही प्रतिफल है. 

2 comments:

  1. हर विचार एक बीज है और हर बीज कर्म रूप में वृक्ष बनेगा जिस पर फल भी लगेंगे और नये बीज भी बनेंगे..

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  2. स्वागत व आभार राहुल जी..

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