Wednesday, May 31, 2017

सबके हित में अपना हित हो

१ जून २०१७ 
यह ब्रह्मांड आपस में किन्हीं अदृश्य तंतुओं से जुड़ा हुआ है. मानव व अन्य सभी सूक्ष्म व स्थूल जीव अपने भौतिक अस्तित्त्व के लिए परस्पर निर्भर हैं. सभी जैसे एक विशाल देह के अंग हों. जिस प्रकार हमारी देह में हाथ अपने लिए नहीं है, पूरी देह की देखभाल के लिए है, पैर भी उसे गति प्रदान करने के लिए हैं, इसी प्रकार सभी प्राणी स्वयं के लिए नहीं हैं अन्यों के लिए हैं. जब समाज व परिवार में हर कोई अपनी उन्नति के साथ-साथ सभी की उन्नति के उपाय सोचेगा तो समाज  अपने आप समृद्धिशाली होगा. अपने पास जो भी योग्यता हो वह समाज के काम आ सके, ऐसी भावना भीतर जगते ही मन को गहरा विश्राम मिलता है. हाथों के द्वारा सेवा न भी ही सके, तो धन के द्वारा, ज्ञान के द्वारा, अपना समय देकर अथवा जगत के प्रति मंगल कामनाएं भेजकर ही हम उस ऋण को किसी हद तक उतार सकते हैं जो हमें इस सृष्टि के प्रति चुकाना है.

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