Wednesday, March 13, 2019

खाली होगा मन का घट जब



जैसे पैर में कोई काँटा लगा हो तो पीड़ा का अहसास दिलाता है, वैसे ही मन में जगी कोई भी कामना हमारे मन को व्यथित कर देती है. यदि हम उस पीड़ा से बचने के लिए कामना को पूरा कर लेते हैं  तो उस क्षण तो एक सुख का अहसास होता है पर संस्कार रूप में वह कामना मन में अपना अधिकार जमा लेती है. दुःख से बचने के लिए पुनः-पुनः उसे पूर्ण करते रहना होगा, किन्तु हर बार पहले से ज्यादा गहरा संस्कार मन पर चढ़ता जायेगा. व्यसन इसी तरह व्यक्ति को अपना शिकार बना लेते हैं. यदि हम उस कामना को पूर्ण नहीं करते और उस पीड़ा को समता भाव से सह लेते हैं तो उस संस्कार को मिटाने के लिए मानो हमने जल बहाया. पहली बार में वह संस्कार मिटने वाला नहीं  है किन्तु बार-बार मन को दृढ़ता से रोका तो एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि वह कामना नहीं जगेगी, जगी भी तो मन को पकड़ेगी नहीं.

8 comments:

  1. बिलकुल सही ,बहुत बढ़िया .....

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    1. स्वागत व आभार कामिनी जी !

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  2. मन के व्यसनों को दूर करने के लिए इच्छाओं पर काबू रखना सबसे जरूरी है। सुंदर पोस्ट।
    नयी पोस्ट: मुकम्मल मोहब्बत की दास्तान।
    iwillrocknow.com

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. मुश्किल है पर असंभव नहीं है। सुन्दर।

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  5. सुशील जी की बातों से मै भी सहमत हूँ ,

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन फाउंटेन पैन का शौक और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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