Thursday, March 14, 2019

सुख का स्रोत एक वही है



जब दुःख को दूर करने के लिए हम संसार की ओर देखते हैं, यह भूल ही जाते हैं कि यह दुःख आया कहाँ से है ? जिस संसार से किसी वक्त हमने सुख लिया था उसी का परिणाम तो यह दुःख मिला है, फिर इसके निवारण के लिए जो उपाय हम करने वाले हैं, वह क्या नये दुःख में नहीं ले जायेगा. साधक की दृष्टि जब इस सत्य को देख लेती है तब वह हर दुःख के निवारण के लिए भीतर देखता है, अथवा परमात्मा की ओर देखता है. स्वयं के स्वरूप में कोई दुःख नहीं है, परमात्मा सच्चिदानंद है, उसके स्मरण से जिस शांति का अनुभव होता है वह अनमोल है. बुद्धि में धैर्य हो तभी वह जड़ व चेतन दोनों के भेद को समझ सकती है, तथा चेतन में विश्राम पा सकती है. कृष्ण उसी को बुद्धियोग कहते हैं.

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