आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक जगत में ये तीन प्रकार के ताप हैं जिनमें मानव जल रहा है। इस जलन से उसके अंतर की सारी सरसता सूख गई है, प्रेम भाव झुलस गया है, आनंद का स्रोत भी शुष्क हो गया है। जो मन शीतल जल की धारा के समान गतिमान हो सकता था वह एक छोटा पोखर बन गया है जिसमें पानी कम और कीचड़ अधिक है। इसी प्रकार बहती हुई एक नदी पहले नाला बनती है फिर एक दिन उसका जल भी सूख जाता है और वहाँ केवल निशान भर रह जाता है। मन में यदि सरसता हो, उसकी माटी कोमल हो तो उसे मनचाहा आकार दिया जा सकता है। ऐसा लचीला मन किसी भी आघात को सह सकता है, भीतर समा लेता है, पर यदि मिट्टी सूख गई हो, तप गई हो तो जरा से आघात से टूट जाती है। मन की तुलना घट से भी की जाती है, जिसे साधना की शीतल आंच में जितना तपाया जाए वह उसे एक साथ कोमल व मजबूत बनाए रखती है । मन एक साथ सरस भी हो और बलशाली भी। कायर की अहिंसा का क्या महत्व और बलशाली की हिंसा किस काम की। हमें अपने मन को देवी के समान एक साथ दोनों गुणों से भरना है। देवी का गौरी रूप माँ का कोमल रूप है, जिसमें वात्सल्य, प्रेम, करुणा के भाव झलकते हैं पर उसका एक काली रूप भी है, वह निडरता से असुरों का नाश करती है। हमें किसी भी आपदा का मुकाबला करने के लिए एक तरफ समर्पण चाहिए, नियमों का पालन करना है, दूसरी तरफ हृदय की दृढ़ता से उसका मुकाबला भी करना है। नवरात्रि का पर्व यही संदेश लेकर आता है।
बेहतरीन पोस्ट, जय माँ भवानी, हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहा भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDeleteआभार !
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