देह और मन एक-दूसरे के विरोधी जान पड़ते हैं , देह को विश्राम चाहिए और मन विचारों की रेल चला देता है, नींद गायब हो जाती है. देह को काम करना है, व्यायाम करना है, मन आलस्य का तीर छोड़ देता है, कल से करेंगे, कहकर टाल जाता है. इसी तरह मन जब विश्राम चाहता है, ध्यान के लिए बैठता है तो देह साथ नहीं देती, यहाँ-वहाँ दर्द होता है और अदृश्य चीटियां काटने लगती हैं. मन जब अध्ययन के लिए बैठना है तो देह थकान का बहाना बनाती है. देह को भूख नहीं है पर स्वादिष्ट भोजन देखकर मन नहीं भरता. मन ऊर्जा है, अग्नि तत्व से बना है. देह में पृथ्वी, जल दोनों तत्व हैं और आग व पानी तो वैसे भी एक-दूसरे के विरोधी हैं. यदि देह व मन में समझौता हो जाये, एकत्व हो जाये, समन्वय हो जाये तो वे अग्नि और जल से मिलकर बनी भाप की तरह कितनी ऊर्जा को जन्म दे सकते हैं. देह भौतिक है, मन आध्यात्मिक, यदि दोनों में सामंजस्य हो जाये तो जीवन में एक नया ही आयाम प्रकट होता है. ऐसा होने पर काम के समय मन, तन को सहयोग देता है, विश्राम के समय देह भी मन को सहयोग देती है. दो होते हुए भी वे दोनों एक की तरह कर्म करते हैं, तब कोई द्वंद्व शेष नहीं रहता. स्वाध्याय तथा प्राणायाम का निरंतर अभ्यास इस लक्ष्य की ओर ले जाने में अति सहायक है. यही अद्वैत की ओर पहला कदम है.
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