Wednesday, June 8, 2011

प्रेम


अप्रैल २०००
मानवीय सदगुणों में सर्वोत्तम है प्रेम, उसी के कारण सृष्टि में सुंदरता है, यही समस्त प्रश्नों का हल है यदि मानव-मानव के प्रति प्रेम का भाव रखे तो सारे वैमनस्य, सारी क्षुद्रता पल भर में मिट जाये. प्रेम लेकिन सच्चा होना चाहिए, ऐसा प्रेम, जो प्रतिदान नहीं मांगता. ऐसा प्रेम सबके जीवन में एक न एक बार उदित होता है, पर उसे कुचल दिया जाता है, ईर्ष्या, लोभ, मोह और क्रोध जैसे अवगुण प्रेम को ढक लेते हैं. वह बीती वस्तु बन जाता है, और कभी-कभी लगता है कि प्रेम कभी था ही नहीं, शायद वह हमारा भ्रम था, पर भ्रम नहीं सत्य था, ऐसा सत्य जो झूठ के नीचे दबा सिसक रहा होता है. यदि क्रोध सत्य हो सकता है तो प्रेम क्यों नहीं ? जरूरत है बस उस कोमल पौधे को सींचने की, जीवित रखने की, आस-पास के झाड़-झंखाड़ को साफ कर उसे सही पोषण देकर बड़ा करने की, वही पौधा एक दिन हमारे जीवन में फलीभूत होगा और खुशियों के फूल बिखेरेगा.

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