Monday, June 20, 2011

सहज सुख


मई  २००० 
जिस सुख को मानव सारी दुनिया में खोजता फिरता है, वह उसे अंतर्मुखी होकर अपने भावों, विचारों, और संवेदनाओं को समझ कर ही मिल सकता है. यदि हमारा सहज स्वभाव ही शांतिपूर्ण न हो तो कुछ नहीं हो सकता, जैसे फूल अपने आप खिलता है व खिलते ही सुगंध बिखेरने लगता है, खुशी अंतर से स्वयंमेव प्रकट होनी चाहिए, वह खुशी मन को तो प्रकाशित करेगी ही बाहर भी खुशबू फैला देगी. जैसे तुलसीदास ने कहा है, देहरी पर रखा दीप अन्दर-बाहर दोनों जगह उजाला फैलाता है. अदृश्य रूप से ईश्वर तो हमारे साथ सदा है, वह हमारे सरों पर अपना हाथ रखे ही हुए है. हमें बस इतना ही करना है कि उसके प्रकट होने में बाधा न खड़ी करें.  

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