Tuesday, July 7, 2015

नित नूतन यह जग है सुंदर

मई २०१०
जीवन में विस्मय न होने का कारण है ज्ञान, इन्द्रियों का सीमित ज्ञान... स्मृति से निश्चय होता है और उससे हम जीवन को पुराने चश्मे से देखते हैं. नित नवीन परमात्मा का यह संसार भी नित नवीन है लेकिन हम अपने पुराने अनुभवों, सूचनाओं तथा मान्यताओं के कारण कुछ भी नवीनता नहीं देख पाते, न तो अपने भीतर न समाज में. ऐसे में जीवन से आनंद व सुख चले जाते हैं. विस्मय बना रहे इसके लिए जरूरी है कि हम स्वयं को जानकार न मानें, बालवत् हो जाएँ, भोले बन जाएँ, तभी हर समय जगत अपने पर से पर्दा उठाकर हमें नवीनता का दर्शन कराएगा ! जीवन रहस्यों से भरा हुआ है पर दुःख से पीड़ित मन की उस तक नजर ही नहीं जाती, भक्त उसे देख लेता है, ज्ञानी भी उसे देख लेता है और प्रतिपल आनंद की वृद्धि का अनुभव करता है. ऐसा सुख से भरा यह हमारा जीवन है कि जितना लुटाओ खत्म ही नहीं होता, पर मिथ्या अहंकार इसे जानने में बाधा बना बैठा है, अहंकार का भोजन ही दुःख है और आत्मा का भोजन ही सुख है. 

3 comments:

  1. बहुत सारगर्भित चिंतन...

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  2. स्वागत व आभार कैलाश जी

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  3. जीवन में पथ - पाथेय बहुत आवश्यक है । सुन्दर - प्रस्तुति ।

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