Thursday, November 7, 2019

गहरे पानी पैठिये


जगत में जिस किसी को भी जिस शै की तलाश है, उसे पाने के लिए खुद ही वह बन जाना होता है. इस जगत का अनोखा नियम है यह, यहाँ स्वयं होकर स्वयं को पाना होता है. तपता हुआ सूरज बन कर ही प्रकाश फैलाना सम्भव है, हिम शिखर हुए बिना शीतलता क्योंकर बिखरेगी, प्रेम यदि पाना है तो स्वयं प्रेम बने बिना कहाँ मिलेगा इसी तरह शांति का अनुभव भी शांत हुए बिना नहीं खिलेगा. आनन्दित हुए बिना ख़ुशी की कामना व्यर्थ है. हम कर्म के द्वारा ख़ुशी पाना चाहते हैं, यह हिसाब ही गलत है. कर्म जब आनंदित होकर किया जायेगा तभी वह निष्काम होगा। सन्त कहते हैं, वास्तव में इस जगत में हमें कुछ पाने जैसा क्या है, जो भी कीमती है, वह परमात्मा ने मन की गहराई में छिपा दिया है, अब कीमती वस्तु इधर-उधर तो रखी नहीं जा सकती न, हम बाहर से जब मुक्त हों तब मन में उतरें और उसे खोज लें, यही काम करने योग्य है.

9 comments:

  1. बहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.

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  2. खुद को पाना
    शांति में गोते लगाना।

    हर बार की तरह जब भी पढ़ता हूँ गहराई में खो जाता हूँ।
    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख 

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया !

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  3. भावपूर्ण प्रस्तुति।

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  4. very useful information.movie4me very very nice article

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