Wednesday, June 2, 2021

जाकी रही भावना जैसी

 श्रद्धा की पूर्णता तभी है जब हम स्वयं के प्रति पूर्ण आश्वस्त हो जाएँ, हम अपनी क्षमताओं के प्रति, अपने इरादों के प्रति तिल मात्र भी संदेह नहीं रखें। हमारा मन पूर्ण श्रद्धा से भरा है तो जगत का व्यवहार स्वयं ही बदल जाता है। यह सारा जगत एक ही तत्व  से बना है, यहाँ एक के प्रति किया गया संदेह पूर्ण के प्रति ही सिद्ध होता है। इसका आरम्भ स्वयं से ही होता है। अपने भीतर उस परमात्मा की उपस्थिति को महसूस करते हुए जब हम जीते हैं तो संदेह कैसा ?स्वयं के प्रति किया अविश्वास ही जगत के प्रति हमारे संदेह का कारण है, और वही औरों के द्वारा हमारे प्रति किए गये व्यवहार में प्रतिफलित होता है। दूसरे हमारे साथ जो भी व्यवहार करते हैं, वह हमारे खुद के प्रति व्यवहार को ही दर्शाता है।


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