Wednesday, October 19, 2011

परम और संसार

मई २००२ 


परमात्मा हमारे हृदय में है, वह हर पल हमारी खबर रखता है, वह जानता है कि हमारे लिये क्या अच्छा है. उसके प्रति प्रेम हमें शुद्ध करता है. हमें उच्चता की ओर ले जाता है. आत्मसंयमित करता  है. तन व मन में हल्का पन लाता है, अहंकार ही हमें भारी बनाता है, अन्यथा तो भार महसूस ही नहीं होता. जब सब कुछ उसी का है, उसी की सत्ता से चलायमान है तो बीच में इस  “मैं” को लाये ही क्यों. एक वही शाश्वत है शेष सभी कुछ न होने की तरफ जा रहा है. हमारी चेतना पर उसी की मोहर लगी है. संसार मोहक रूप धरकर हमारे सम्मुख आता है, ठगना ही उसका उद्देश्य है. संसार को उसके वास्तविक रूप में देखने पर उसकी पोल खुल जाती है, यह हमें, हम जैसे हैं उसी रूप में अपनाकर शुद्ध प्रेम का अनुभव नहीं कराता बल्कि हम जो हैं उसे अस्वीकारने में सहायक  होता है. ईश्वर हमें, हम जैसे हैं, सहज रूप में स्वीकार करता है.

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