Monday, October 31, 2011

मिलन और मुक्ति


जून २००२ 
इस सृष्टि में जो उत्पन्न होता है, वह नष्ट भी होता है. यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है. इसी बात को याद रखते हुए ध्यान में भी किसी अच्छी या बुरी संवेदना को महत्व नहीं देना है, मन का समत्व भाव बनाये रखना है. इसी से आत्मिक शक्ति प्रकट होने लगती है. हमारी चेतना खुद भी तो प्रकट होना चाहती है. इस पथ पर मिलन मध्य में होता है, अंत में नहीं. साधक यदि श्रद्धा भाव से चलता रहे तो इसी जीवन में एक दिन ऐसा आता है कि ध्यान करना नहीं पड़ता टिक जाता है. अभी चाहे लक्ष्य दूर हो पर यह निश्चय होना चाहिए कि वह परमात्मा हर क्षण हमारे साथ है. अंतर में उसी का प्रकाश है. बुद्धि में उसी का उजाला है. आत्मा में उसी का प्रेम है. वह हमारे मन पर अपना पूरा अधिकार जमा चुका है, वही एक दिन हमें मुक्त भी करेगा.

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