Thursday, July 5, 2012

खोलनी हैं मन की जंजीरें


मई २००३ 
हमारे जीवन के लिये जो भी आवश्यक है, ईश्वर ने उसके भंडार खोल दिए हैं. धूप, हवा और पानी तथा इनसे ही उत्पन्न अन्न. यही तो हमें चाहिए, बजाय कृतज्ञ होने के हम अपने अभावों की तरफ दृष्टि डालते रहते रहते हैं. यही हमें बांधता है, मन की जंजीरें दिखाई नहीं पड़ती पर वे हैं बहुत मजबूत. जिन्हें हम स्वयं ही बांधते आये हैं, कितनी ही गाँठे हैं जो हम नित्य प्रति बांधते जाते हैं. सदगुरु की कृपा से ज्ञान का प्रकाश जब भीतर फैलता है तो सारे विकार स्पष्ट नजर आते हैं, वरना अहंकार का अँधेरा इतना गहना था कि कुछ सूझता ही नहीं था. सदगुरु दर्पण है जिसमें असलियत झलकती है. हमारे विकार चाहे कितने ही अधिक हों कृपा सदा उससे कहीं अधिक है सो शीघ्र ही जीवन में प्रकाश बरसता है... जीवन फिर एक उत्सव बन जाता है ..कभी खत्म न होने वाला उत्सव.


1 comment:

  1. प्रकाश की और उन्मुख करती हुई पोस्ट।

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