Tuesday, July 31, 2012

छूटें जब आग्रह तब वह आता है


जून २००३ 
देह को जन्मने के बाद जो नाम दिया गया है, वह तो बदला जा सकता है लेकिन तन के भीतर जहाँ से खुद के होने की सत्ता का भान होता है, वह अपरिवर्तनीय है. वही वास्तव में हम हैं, और वह सभी के भीतर है. सभी के भीतर वही चैतन्य है. उस का अनुभव करने के लिये ही हम शरण में जाते हैं, उसका अनुभव होने के बाद एक मदहोशी एक सात्विक मस्ती का अनुभव होता है, शरण में जाने का अर्थ है कोई आग्रह न रखना, अस्तित्त्व ने जो हमारे लिये तय किया है उसे स्वीकार करना, वैसे भी हम जो चाहते हैं, वह सभी होता कहाँ है और जो होता है वह भाता नहीं, जो भाता है वह टिकता नहीं फिर जो नहीं भाता वह भी नहीं टिकेगा तो अप्रिय को देखकर हमें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है. सारे आग्रह जब छूट जाते हैं तो जीवन सहज हो जाता है, भीतर की गाठें खुलने लगती हैं, प्रकाश हो जाता है.    

7 comments:

  1. बहुत ही गहन है ये पोस्ट और सत्य से परिपूर्ण.....इसका कुछ अंश आपके नाम से फेसबुक पर डाल रहा हूँ ।

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    1. इमरान, आपको जब भी कुछ अच्छा लगे आप बिना कहे, बिना नाम के कहीं भी इस्तेमाल कर सकते हैं, यह ज्ञान अस्तित्त्व का है...

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  2. बहुत सुंदर ....
    रिसता सा मन मे ...!!

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  3. सारे आग्रह जब छूट जाते हैं तो जीवन सहज हो जाता है, भीतर की गाठें खुलने लगती हैं, प्रकाश हो जाता है.

    पथ प्रदर्शक पोस्ट विचार शक्ति को उत्तेजित करती .

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  4. अनुपमाजी, एसएम, व वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !

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  5. आशा हिलकोरों से परिपूर्ण प्रेरणादायक लेख
    आभार

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