Sunday, July 1, 2012

भीतर बरसे जाता है वह


मई २००३ 
इस संसार से जो भी हम प्राप्त करते हैं उसके पीछे दुःख छिपा हुआ है. एक बार जब बुद्धि इस सत्य को जान लेती है तो भीतर गए बिना कोई रस्ता नहीं बचता और वहाँ आनंद बरस ही रहा है. उसके बाद जगत का दुःख सहन नहीं होता. तब सहज वैराग्य का जन्म होता है. और जब यह क्षण जीवन में आता है जीवन संगीतमय हो जाता है. अधरों से मुस्कुराहट कभी जाती नहीं. आँखों में एक रहस्य छिपा रहता है. तब जीवन में उपरति हो जाती है. हर कार्य एक खेल लगता है. तब जीना कितना सहज और सरल हो जाता है.

7 comments:

  1. अति सुंदर ...!!
    आभार अनीता जी .

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  2. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,आभार

    MY RECENT POST...:चाय....

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  3. जब बुद्धि इस सत्य को जान लेती है तो भीतर गए बिना कोई रस्ता नहीं बचता
    truth of life

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  4. इसी पथ पर अग्रसर हैं ।

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    1. अनुपमा जी, धीरेन्द्र जी, रमाकांत जी, व इमरान स्वागत इस सुंदर पथ पर...

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  6. तब जीवन में उपरति हो जाती है. हर कार्य एक खेल लगता है. तब जीना कितना सहज और सरल हो जाता है.
    बहुत सुन्दर सार .

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