Thursday, July 19, 2012

भीतर का संसार अनोखा


जून २००३ 
ध्यान उस परमात्मा से मिलने का द्वार है, और ध्यान तभी टिकता है जब मन खाली हो, उसमें इस नश्वर जगत की उधेड़-बुन न चल रही हो, कोई संशय न हो और कोई कामना भी न हो. जगत आत्मा को दे भी क्या सकता है, साधक को अपने लक्ष्य तक पहुंचने की कामना के अतिरिक्त कुछ याद नहीं रहता. सत्य की सत्ता में अटूट विश्वास, उसके प्रति अनन्य श्रद्धा, और असीम प्रेम यही उसकी पूंजी होती है. इन सबको हृदय में धर कर वह ध्यान में बैठता है तो भीतर जैसे अमृत कलश छलक उठता है. वे पल अनुपम होते हैं, फिर समय का ध्यान नहीं रहता, भीतर से जैसे कोई तार जुड़ जाता है, वास्तव में क्या होता है उसे भी ज्ञात नहीं होता. वह अकथनीय है, अवर्णनीय है. लेकिन उर में एक विश्रांति का अनुभव होता है, उस के प्रेम का अनुभव उसकी निकटता का अनुभव, भीतर का संसार अनोखा है वहाँ उजाला ही उजाला है, संगीत है. परमात्मा रसमय है, प्रेममय है.

4 comments:

  1. वे पल अनुपम होते हैं, फिर समय का ध्यान नहीं रहता, भीतर से जैसे कोई तार जुड़ जाता है, वास्तव में क्या होता है उसे भी ज्ञात नहीं होता. वह अकथनीय है, अवर्णनीय है.......बिलकुल सच कहा है आपने.....शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता कुछ अनुभवों का ।

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  2. ध्यान उस परमात्मा से मिलने का द्वार है,

    सत्य वचन

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  3. भीतर का संसार अनोखा है वहाँ उजाला ही उजाला है, संगीत है. परमात्मा रसमय है, प्रेममय है.
    बेहद सटीक प्रस्‍तुतिकरण ...आभार

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  4. इमरान, रमाकांत जी व सदा, आप सभी का अभिनन्दन व आभार !

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