Wednesday, July 25, 2012

चलती रहे यात्रा अविरत


जून २००३ 
हमारी यात्रा निर्विघ्न चलती रहे, इसका सतत् प्रयास करना है. सदगुरु की दी हुई औषधि का पान नियत समय पर करें, तभी यह जन्म जन्मान्तर का रोग दूर हो सकता है. यह भव रोग बहुत बलशाली है पर गुरुज्ञान उससे भी अधिक सबल है यदि उसे उपयोग में लायें. सब घटों में वह ईश्वर है, लेकिन गुरु के घट में वह प्रकट हुआ है. लकड़ी में जैसे अग्नि छुपी है, दूध में जैसे मक्खन है, वैसे ही सबके अंतर में निर्विकार परमात्म आनंद है. इस जगत की चाल ऐसी है कि ईश्वर सदा सर्वदा विद्यमान होते हुए भी सभी इसे समझ नहीं पाते. वही इस पथ का अधिकारी है जो संसार की असारता को जानकर उसके पीछे छिपे रहस्यों को जानना चाहता है, जो इस भाग-दौड़, आपाधापी से ऊब कर कुछ ऐसा पाना चाहता है, जो सदा एक सा है, जो परम है.

4 comments:

  1. ज्ञानमयी और सुन्दर।

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  2. संसार असार का रहस्य बतलाती बातें ....

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  3. गुरुज्ञान उससे भी अधिक सबल है यदि उसे उपयोग में लायें. सब घटों में वह ईश्वर है,

    ज्ञानवर्धक प्रस्तुति,,,

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  4. इमरान, रमाकांत जी व धीरेन्द्र आप सभी का स्वागत व आभार !

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