Thursday, July 12, 2012

सब उस पथ के ही राही हैं


मई २००३ 
ईश्वर को मानना ही नहीं जानना है क्योंकि मानना भी कल्पना है. हम अपने संस्कारों के कारण, परिवार व समाज की मान्यता के कारण मन में ईश्वर का एक चित्र बना लेते हैं, पर जब उसे स्वयं अनुभव करते हैं, तभी उसे वास्तव में जानते हैं. जीवन में श्रद्धा हो, विश्वास हो, प्रेम हो, आस्था हो, अनुशासन हो, परहित की भावना हो, दोष दृष्टि न हो, अपने दोषों को उखाड़ फेंकने की ललक हो, स्वयं को कुछ न मानते हुए उस परम सत्ता को ही जगत का कारण मानते हुए निरहंकारी होते जाने का प्रयास हो, तभी साधना के पथ का अधिकारी कोई बन सकता है. सभी में उसी चैतन्य का वास है, सभी अपने-अपने पथ से उसी की ओर जा रहे हैं, सभी को वह उनकी क्षमता के अनुसार निर्देशित कर रहा है, यह मानव जन्म हमें उस परम को जानकर आनंदित होने के लिये मिला है. जीवन का परम लक्ष्य वही है, केवल वही, उसे पाकर कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता...



5 comments:

  1. यह मानव जन्म हमें उस परम को जानकर आनंदित होने के लिये मिला है. जीवन का परम लक्ष्य वही है,

    परम सत्य

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  2. जब उसे स्वयं अनुभव करते हैं, तभी उसे वास्तव में जानते हैं. और जीवन में इश्वर के प्रति श्रद्धा, विश्वास ,प्रेम, आस्था, बढ़ जाती है,,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  3. स्वयं को कुछ न मानते हुए उस परम सत्ता को ही जगत का कारण मानते हुए निरहंकारी होते जाने का प्रयास हो, तभी साधना के पथ का अधिकारी कोई बन सकता है.
    बहुत सही !!

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  4. रमाकांत जी, धीरेन्द्र जी व संगीता जी, आप सभी का स्वागत और आभार !

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  5. सही कहा मानने और जानने में बहुत भेद है ।

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