Monday, June 2, 2014

तेरा साहिब घट के भीतर

अप्रैल २००६ 
प्रेम से प्रभु प्रकटता है, प्रेम विश्वास से, विश्वास ज्ञान से, ज्ञान श्रद्धा से, श्रद्धा समता से और समता सत्य से और सत्य प्रभु ही है. हमारा हृदय जब समता से भर जाता है तब ही मानना चाहिए परम में हमारी स्थिति है, वह हम सभी के भीतर अनंत सुख के रूप में विद्यमान है. जब तक उसका ज्ञान नहीं होता तभी तक सारी बेचैनी है, उसके बाद तो मन मस्ती में डूब जाता है. हमारे भीतर जो मोती भरे छिपे हैं, जो अमृत भरा है उसे ध्यान की डुबकी लगा कर हम पा सकते हैं. भीतर उसका प्रकाश है, संगीत है, ऊर्जा है, आनंद है उस सारी सम्पत्ति को हम सहज ही पा सकते हैं. जगत के अभाव नित्य हैं, परमात्मा का भाव नित्य है. हमें भाव चाहिए, अभाव नहीं. 

2 comments:

  1. बढ़िया सारगर्भित भाव सरणी।

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  2. स्वागत व आभार !

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