जनवरी २००८
जीवन बड़ा
महिमापूर्ण है ! जब कोई निर्विकार हो जाये, निश्चेष्ट हो जाये, निशब्द हो जाये तो
जीवन अपने शुद्ध रूप में प्रकट होता है. बंधन अपने आप खुल जाते हैं, बल्कि बंधन
में डालने वाले ही सहायक हो जाते हैं. ऐसा जीवन सहज व स्वाभाविक है. वही व्यक्ति
धनी है जो अपने स्वार्थ को पहचान ले. स्व का अर्थ है आत्मा तथा अर्थ का उद्देश्य !
आत्मा क्या है इसका उत्तर नहीं दिया जा सकता, बस इतना ही कि यह भगवान की शक्ति है.
आत्मा बुद्धि से परे है, इसे अनुभव से ही जाना जा सकता है. यह ज्ञान, शांति, सुख,
प्रेम, आनंद, शक्ति व पवित्रता का पुंज है, ये सभी दैवीय गुण आत्मा का सहज स्वभाव
है. इनमें स्थिर रहना तथा इन्हें निरंतर परमात्मा के अनंत स्रोत से बढ़ाते रहना ही
योग है. जब भीतर निरंतर आनंद का झरना बहता रहे, ज्ञान की वर्षा होती रहे तो मानना
चाहिए कि परमात्मा से योग हो गया. पूर्ण विश्रांति का अनुभव तभी होता है. सारी दौड़
तब समाप्त हो जाती है. भीतर स्थिरता का अनुभव होता है.
मन के सब बन्धन खुल जायें ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना ।