जनवरी २००८
देहाध्यास का
लक्षण है जड़ता, लोभ, काम, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध तथा अहंकार तथा आत्मा का लक्षण है
उत्साह, सृजनात्मकता, उदारता, संतोष, प्रेम, ज्ञान तथा निरभिमानता ! हमें यह
अधिकार है कि दोनों में से जो चाहे चुन लें. देहाध्यास की आदत जन्मों-जन्मों की पड़ी
हुई है, यह उसी तरह सरल है जैसे पानी का सदा नीचे को बहना. आत्मा में रहने के लिए
अभ्यास करना पड़ता है. ऊपर उठना हो तो श्रम चाहिए, गिरने में तो कोई श्रम नहीं है.
मन, बुद्धि तथा संस्कार के माध्यम से आत्मा ही अपनी शक्ति को दिखाती है, पर वह
उससे परे है, जीवन की सार्थकता इनके पार जाकर उस आत्मा को जानने में है. हमारे
जीवन से उसकी साक्षी मिले जो है पर अदृश्य है, जहाँ सारे द्वंद्व समाप्त हो जाते
हैं और जो सारे विरोधाभासों का मूल है. वह परमात्मा ही केंद्र है, वही लक्ष्य है,
परिधि से केंद्र तक जाना है.
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