यह सृष्टि कितनी अद्भुत
है, सागर की लहरें, गगन के सितारे, पंछियों के गान, चाँद की चाँदनी सभी जैसे उत्सव
मना रहे हैं ! परमात्मा रसरूप है, उसकी बनाई सृष्टि रस का सागर है ! संसार तो
दर्पण है, हम जैसे हैं वैसा ही हमें उसमें दिखाई पड़ेगा. संसार तो कोरा कागज है हम
जैसा चित्र उस पर बनाएं वैसा ही दिखता है. हम यदि चाहें तो इस पर कुछ न बनाएं कोरा
ही रहने दें तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है ! मोक्ष का अर्थ है परम स्वंत्रता !
परम स्वीकार ही परम आजादी है, अमनी भाव है, मन है ही नहीं ! वहीं अखंड आनंद है,
परम दशा है, सुख-दुःख वहाँ है ही नहीं ! जहाँ हम परम ऊर्जा के साथ एक हो जाते हैं
!
रसो वै सः ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय - प्रस्तुति ।
परम स्वीकार ही परम आजादी है, अमनी भाव है, मन है ही नहीं !.....................
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार राजेन्द्र जी !
ReplyDeleteस्वागत व आभार शकुंतला जी व राहुल जी !
ReplyDeleteअद्भुत !!!
ReplyDeleteअच्छा लिखा है !
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास