१६ नवम्बर २०१७
वर्तमान के कर्मों द्वारा हम
प्रारब्ध के कर्मों को बदल सकते हैं. जन्म, आयु, और भोग हमें प्रारब्ध के अनुसार
मिलते हैं, किन्तु हम कितना सुख-दुःख भोगते हैं, वह वर्तमान के पुरुषार्थ पर
निर्भर करता है. किसी व्यक्ति को छोटा सा कष्ट भी अत्यधिक दुःख दे सकता है, और कोई
बड़ा रोग होने पर भी शांति से उसे दूर करने की चेष्टा करता है. हमारे हर कर्म का फल
किसी न किसी रूप में सम्मुख आने ही वाला है, यह जानते हुआ साधक वर्तमान के कर्मों
के प्रति सजग रहता है. प्राप्त हुए दुःख को अपने ही किसी पूर्व कर्म के कारण आया
जानकर वह अपने दुःख के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराता.
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