६ नवम्बर २०१७
सुख-दुःख, इच्छा-प्रयत्न और राग-द्वेष
से युक्त मन सदा ही चलायमान रहता है. जगत से राग के कारण सुख की इच्छा इसे प्रयत्न
में लगाती है. द्वेष के कारण यह दुःख का अनुभव करता है. ध्यान करते समय अल्प काल
के लिए ही सही जब मन सब इच्छाओं से मुक्त होकर स्वयं में स्थित हो जाता है, तब
सुख-दुःख के पार चला जाता है. उस स्थिति में न राग है न द्वेष, एक निर्विकार दशा का
अनुभव अपने भीतर कर यह शांति का अनुभव करता है. देह को सबल बनाने के लिए जैसे
व्यायाम आवश्यक है, मन को सबल बनाने के लिए विश्राम आवश्यक है. ऐसा विश्राम ध्यान
से ही प्राप्त होता है, जो उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है.
ध्यान गूंगा नहीं है। ध्यान से होने वाला ज्ञान ही शाश्वत सत्य है। यही आत्म ज्ञान का साक्षी भाव है। परमात्मा तत्व की कल्पना को इदम् करके दिखाता है और कर देता है समस्त मिथ्या वाद का अंत।
ReplyDeleteसही कहा है आपने अशोक जी, स्वागत व आभार !
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