२२ दिसम्बर २०१७
जीवन और मृत्यु देखने में विपरीत लगते हैं पर वास्तव
में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. जीवन आरम्भ हुआ उससे पूर्व आत्मा एक देह त्याग
कर आई थी. शिशु बड़ा हुआ, किशोर और युवा होने तक देह विकसित होती रही, फिर
प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापा आने पर देह सिकुड़ने लगी और एक दिन आत्मा ने पुनः शरीर को
त्याग दिया. जीवन के साथ-साथ ही मृत्यु की धारा भी निरंतर बहती रहती है. हमें एक
देह में रहते-रहते उसी तरह उससे लगाव हो जाता है जैसे किसी को अपने ईंट-पत्थरों के
घर से हो जाता है, घर बदलते समय भीतर कैसी हूक उठती है, उसी तरह आत्मा को नई देह
मिलेगी पर इस जर्जर देह को त्यागने में उसे अत्यंत कष्ट होता है. धरती का आकर्षण
उसे अपनी ओर खींचता है और अनजान का भय भी सताता है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - श्रीनिवास अयंगर रामानुजन और राष्ट्रीय गणित दिवस में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
Deleteजीवन के साथ-साथ ही मृत्यु की धारा भी निरंतर बहती रहती है
ReplyDeleteस्वागत व आभार कविता जी..
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