१९ दिसम्बर २०१७
संतजन कहते हैं, मानव खुद को भूल गया है. जैसे कोई बच्चा मेले
में खो जाये और उसे न अपने घर का पता-ठिकाना ज्ञात हो न पिता का नाम तो उसकी जो
अवस्था होती है वैसी ही अवस्था हमारी इस जगत रूपी मेले में आकर हो गयी है. ऐसे में
कोई पहचान का व्यक्ति आ जाये और बच्चे को उसके घर पहुंचा दे तो वह कितना प्रसन्न न
हो जायेगा. संत हमें वास्तविक रूप से पहचानते हैं, उनके संग होकर ही हम अपने घर
पहुंच सकते हैं. बच्चा सहज विश्वासी है, पर हमारी बुद्धि संशय करती है, और हम घर
जाने का मार्ग जानकर भी कुछ और समय संसार में ही भटकते रहना चाहते हैं. यह संसार
कहीं बाहर नहीं है और न ही यह घर कहीं बाहर है, मन ही संसार है और आत्मा ही घर है.
दूरी न स्थान की है न समय की, पर कैसा आश्चर्य कि युगों से हम घर से बाहर ही भटक
रहे हैं.
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